राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि हमें धर्म और संस्कृति को आचरण में लाना जरूरी है। हमें अपनेे धर्म को प्रत्यक्ष रूप से आचरण में उतारना होगा। हमारी संस्कृति श्रेष्ठ संस्कृति है परंतु भारतीय संस्कृति के उत्थान के लिए प्रयत्न करना होगा। सनातन धर्म पर हमारी सृष्टि है, धर्म नहीं तो सृष्टि नहीं अतः उसे पहचान कर उस पर चलने वाले सुखी रहेंगे।
शनिवार को परमार्थ निकेतन में स्वामी चिदानंद सरस्वती का 72वां जन्मदिन के अवसर पर आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि 142 करोड़ लोग भारत की रीढ़ की हड्डी के मनके हैं। हमारी भूमि में सब कुछ है, छह हजार वर्षों से हम खेती कर रहे हैं और आज भी कर रहे हैं। जो बातें विज्ञान की उपयोगी हैं। वह हमारे वेदों में उपलब्ध हैं। हमारे पास पहले से ही ज्ञान भी है और विज्ञान भी है।
सनातन धर्म अपना काम करता है, सनातन धर्म अपने विधि-विधान के अनुसार अपना कार्य करेगा उसे पहचानकर हमें उन संस्कारों को स्वीकार कर चलना होगा तो हम सुखी रहेंगे। धर्म को हमारी जरूरत नहीं है परंतु हमें धर्म की जरूरत है। भागवत ने कहा कि स्वामी चिदानंद सरस्वती को अपना जन्मदिन मनाने की आवश्यकता नहीं है लेकिन, हमें जरूरत है कि वे जो कार्य कर रहे हैं उसे अपने जीवन में हम लेकर आएं। उन्होंने कहा कि संतों के आचरण में धर्म रहता है, धर्म सर्वत्र कार्य करता है।
कार्यक्रम के दौरान हरिद्वार से लेकर चारधाम तक पूरे क्षेत्र को नशामुक्त किए जाने पर गहन चर्चा की गई। वहीं पर्यावरण सेवा उत्सव के तहत उत्तरकाशी जनपद के 200 से अधिक चिह्नित परिवारों को 20-20 नींबू के पौधे उपहार स्वरूप भेंट किए गए। जिससे उक्त परिवारों की आजीविका भी सुधर सके। सरसंघचालक मोहन भागवत ने झंडी दिखाकर नींबू के पौधों के वितरण के लिए वाहन को उत्तरकाशी के लिए रवाना किया। इस अवसर पर स्वामी शुकदेवानंद चेरिटेबल अस्पताल में निःशुल्क दंत चिकित्सा शिविर का आयोजन भी किया गया।