उत्तराखंड कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व वनाधिकार आन्दोलन के संस्थापक प्रणेता किशोर उपाध्याय ने मुख्यमन्त्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर राज्य में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम लगाने पर गम्भीर चिंता व्यक्त की और इस काले निर्णय को वापस लेने को कहा है।
नेता प्रतिपक्ष को भी पत्र की प्रतिलिपि इस अनुरोध के साथ भेजी है कि वे इस सम्बन्ध में कदम उठायेंगे।
उपाध्याय ने अपने पत्र में कहा है कि:-
“आदरणीय मुख्यमंत्री जी,
राज्य में रासुका लागू करने के आपके निर्णय से अत्यंत दुःख हुआ है।
आप जैसे युवा मुख्यमंत्री से कम से कम मुझे ऐसी आशा नहीं थी। सम्भवतः राज्य में पहली बार इस तरह का निर्णय लिया गया है, वह भी अक्तूबर का महीना लोकतांत्रिक मूल्यों, सरकारी दमन और जन अधिकारों की रक्षा के ख़ातिर स्वयं को बलिदान करने वाले अद्वितीय पुरुष महात्मा गांधी जी के जन्म का महीना है, उनकी जयन्ती के एक दिन बाद सरकार का यह निर्णय उस भावना पर कुठाराघात करता है, जिस भावना से राज्यों की सरकारें और केंद्र सरकार उनकी जयन्ती के कार्यक्रम आयोजित कर रही है।
इसी महीने राज्य आन्दोलनकारियों के साथ रामपुर तिराहे पर क्या-क्या नहीं हुआ? आप अच्छी तरह से जानते हैं।
संभवतः आपने राज्य आन्दोलन में युवा आन्दोलनकारी के रूप में हिस्सा भी लिया हो।
मैं तो 13 दिन आमरण अनशन पर रहा। जेल भी गया। पुलिस की लाठियाँ और धक्के भी खाये हैं।
रासुका लगाना उन हुतात्माओं का अपमान है, जिन्होंने अपना वर्तमान और भविष्य इस राज्य को बनाने के लिये क़ुर्बान कर दिया। यह निर्णय राज्य की नारी शक्ति का भी अपमान है, जिसने रामपुर तिराहे पर राज्य के लिये अपना सर्वस्व खो दिया।
असहमति के स्वरों को सुनने की व्यवस्था ही नहीं, अपितु उसे सम्मान देने के उत्सव का नाम
ही लोकतन्त्र है।
एक-एक वोट की शक्ति हमें लोकतन्त्र में सर्वोच्च स्थान पर स्थापित करती है, रासुका लगाना उस शक्ति को भी अपमानित करता है।
वोट माँगा जाता है और भिक्षुक का हाथ और सिर सदैव झुके हुये होते हैं, तभी भिक्षा फलीभूत होती है।
उन्होंने सीएम से गुजारिश की कि प्रदेश से रासुका को जल्द से जल्द हटाया जाए।
गौरतलब है कि राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाने के अधिकार की समयावधि को तीन माह के लिए और बढ़ा दिया है। गृह विभाग ने इस संबंध में अधिसूचना जारी की है