अनुरक्षण, अनुश्रवण, उपान्तरण, प्रतिस्थानी, अग्रेतर, अंत:स्थापन, विधिमान्यकरण.. ऐसे तमाम शब्दों का उत्तराखंड सरकार के शासनादेशों और अधिसूचनाओं में जिक्र होता है। आने वाले दिनों में आमजन को चकराने और आसानी से समझ में न आने वाले ऐसे शब्द शासनादेशों से विदा होंगेसरकार शासनादेशों में बदलाव करने जा रही है, ताकि ये आम नागरिकों की समझ में आसानी आ सकें। जल्द ही सरकार शासनादेशों की समीक्षा और शब्दावली में संशोधन को लेकर एक कमेटी का गठन करेगी। मसूरी चिंतन शिविर में मुख्य सचिव डॉ. एसएस संधु ने शासनादेशों की भाषा का जिक्र किया था कि वह सहज और आमजन की समझ में आने वाली होनी चाहिए। मुख्य सचिव के इस कथन के बाद अब सरकार इस दिशा में आगे बढ़ रही है।
भाषा मंत्री से लेकर पूर्व मुख्य सचिव और भाषाविद् तक शासनादेशों की भाषा को सरल बनाने के पक्षधर हैं। वे सभी मुख्य सचिव के कथन से सहमत हैं। उनका मानना है कि जिन शासनादेशों की भाषा कठिन, द्विअर्थी होती है, उनके अनुपालन में दिक्कतें होती हैं। कई बार उनकी अलग-अलग परिभाषा गढ़ दी जाती है। इसलिए वे सभी शासनादेशों में प्रशासनिक शब्दावली के उन शब्दों के सरल विकल्प देने पर जोर दे रहे हैं, जिनके सरल पर्यायवाची सहज उपलब्ध हैं