उत्तराखंड में भी ‘का बा’ का शोर

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हरिद्वार के सत्यदेव सोनी ‘सत्य’ की लिखी कविता खूब सुर्खियां बटोर रही है। उत्तराखंड की राजनीतिक हलचल को देखते हुए यह रचना लोगों को रोचक लग रही है।

यूपी और बिहार की तरह अब उत्तराखंड में भी ‘का बा’ का शोर मच रहा है। चुनावी समर में प्रत्याशी वोट मांगने जगह-जगह घूम रहे हैं। टिकट न मिलने पर दल बदल हो रहा है। चुनावी रैलियां चल रही हैं। नेतागण एक-दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं।

ऐसे में कवि भी अपनी रचनाओं के माध्यम से तंज कस रहे हैं । वे अपनी कविताओं के माध्यम से दल-बदल, क्षेत्रवाद, जातिवाद और चुनावों में पैसों के प्रभाव को उजागर इन कुरीतियों पर चोट कर रहे हैं। कुछ ऐसी कविताओं की पंक्ति पाठकों के समक्ष रखी जा रही हैं। इससे पहले यूपी और बिहार की राजनीति भी ‘का बा’ से गरमाई थी।

हरिद्वार के सत्यदेव सोनी ‘सत्य’ की लिखी कविता खूब सुर्खियां बटोर रही है। उत्तराखंड की राजनीतिक हलचल को देखते हुए यह रचना लोगों को रोचक लग रही है।

बदरी केदार बा गंगा के धार बा।
उत्तराखंड देवभूमि यहीं हरिद्वार बा।
धाम यहां चार बा, पुण्य भूमि सार बा।
तीरथ त्रिवेंद्र यहां, धामी सरकार बा।
टिहरी गढ़वाल बा, झील नैनी ताल बा।
मसूरी में मेला लागे, यहां हर साल बा।
सीधे साधे लोग बा, छप्पन हैं भोग बा।
रामदेव कर रहे, बैठे हुए योग बा।
मनसा मां चंडी बा, नागा साधु दंडी बा।
महाकुंभ नगरी ये, रहती अखंडी बा।
नीलकंठ भोला बा, सीधा साधा चोला बा।
अद्भुत ऋषिकेश, देख मन डोला बा।
हिमगिरि का माथ बा। गोमुख का साथ बा।
जीवन संवार रही, जल औषधि हाथ बा।
आदर सत्कार बा। प्रकृति के दुलार बा।
सबसे हो निश्छल, उत्तराखंड के प्यार बा।

कवि देवेंद्र उनियाल ने अपनी रचना ‘गौं गोला खोला बदलगिन, झंडा डंडा झोला बदलगिन, जीत हार झणी कैकी कोली, खोफरों मा टोपला बदल गिन, तराजू का तोल बदल गिन, घड़ी-घड़ी एग्जिट पोल बदल गिन’ (गांव-गलियां, तोक बदल गए हैं, झंडे-डंडे- झोले बदल गए हैं, जीत हार न जाने किसकी होगी, सिर की टोपियां बदल गई हैं, तराजू के तोल बदल गए हैं, घड़ी-घड़ी में एग्जिट पोल के नतीजे बदल जा रहे हैं.. आदि पंक्तियों से तंज कसा है।

वहीं, कवि जेके माटी ने ‘सियासत के जितने पहाड़ वो तराशते रहे, हम भी उन्हीं में अपना गांव तलाशते रहे, वो साहिल भी दरिया के सब एक हो गए, जिनमें कभी समंदर भर के फासले रहे’ आदि रचना से मतदाताओं को नेताओं की हकीकत बता रहे हैं। उधर, रुद्रप्रयाग में युवा लोक कवि नंदन सिंह राणा नवल ने विस चुनाव को लेकर कई कविताएं लिखी हैं, जिसमें राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों से लेकर निर्दलीय की भूमिका को बयां किया गया है।

नंदन सिंह राणा की कविता
ठांडि रैंदि मुखड़ि जौंकि हाथ जोड़णा आजकल
हैका बॉठौ खाण वला, कछमोली बांटणा आजकल
नौण मलै खाण गीज्यां, बर्सु बिटिन भग्यान जु
हैका पर्या मा रोडु घुमै, छां छोंलणा आजकल

पौड़ी के कवि गणेश खुगशाल गणि ने कहा कि उत्तराखंड का वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य सिद्घांतवादी नहीं, बल्कि अवसरवादी हो गया है। यहां चुनाव के दौर में पता ही नहीं चल रहा है कि कौन किस दल का सदस्य है और कौन चुनाव में किस दल से प्रत्याशी के रुप में सामने है।
यह हास्यास्पद स्थित पौड़ी जनपद ही नहीं संपूर्ण उत्तराखंड में देखने को मिल रही है। कवि खुगशाल ने कहा कि उत्तराखंड का दुर्भाग्य है कि राज्य गठन के 22 वर्ष में भी हम प्रदेश की स्थाई राजधानी सुनिश्चित नहीं कर पाए हैं। लोकभाषा गढ़वाली व कुमाऊंनी को तो जैसे इस दौर में दरकिनार ही कर दिया गया है।
कवि ने कहा कि कहा कि पर्वतीय प्रदेश उत्तराखंड का गठन जिन भावनाओं व संभावनाओं को लेकर हुआ था। उस पर कोई राजनीतिक दल बात नहीं कर रहा है। स्थायी राजधानी हो या लोकभाषा की बात हो, ये इस बात को हमेशा टालने की बात करते हैं। कहा गढ़वाली व कुमाऊंनी भाषा के संरक्षण को भाजपा व कांग्रेस ने आज तक कोई कार्य नहीं किया।
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