जोशीमठ भू-धंसाव का अध्ययन कर लौटे वैज्ञानिकों का दावा भू-धंसाव में काफी हद तक कमी आएगी

News Khabar Express

जोशीमठ भू-धंसाव मामले में एक नया खुलासा हुआ है। भू-धंसाव का अध्ययन कर लौटे एक संस्थान के वैज्ञानिकों का कहना है कि हाइड्रोस्टैटिक प्रेशर के साथ ही अलकनंदा नदी में रैणी आपदा के बाद लगातार जारी टो कटिंग के चलते जोशीमठ में यह नजारा देखने को मिला है। हालांकि, सुकून देने वाली बात यह है कि भू-धंसाव क्षेत्र से अधिकांश पानी निकलकर अलकनंदा नदी में जा चुका है। साथ ही अब मिट्टी सूखने लगी है। ऐसे में अब इस भू-धंसाव में काफी हद तक कमी आएगी।वैज्ञानिकों का कहना है कि जोशीमठ में भू-धंसाव वाले इलाके की जमीन स्थिर होने का प्रयास कर रही है। हालांकि, इसमें थोड़ा वक्त लगेगा। गर्मी शुरू होते ही परिस्थिति में सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेंगे। नाम न छापने की शर्त पर वैज्ञानिकों ने बताया कि जोशीमठ में जेपी कॉलोनी में जो पानी का बहाव 10 लीटर प्रति सेकंड की गति से हो रहा था, अब वह 1.9 लीटर प्रति सेकंड की गति से हो रहा है। जो सुकून देने वाली बात है। वैज्ञानिकों का मानना है कि जोशीमठ भू-धंसाव को लेकर साल 2021 में आई रैणी आपदा भी काफी हद तक जिम्मेदार है। वैज्ञानिकों के मुताबिक आपदा के दौरान धौलीगंगा और अलकनंदा नदियों में बड़े पैमाने पर जलप्रवाह हुआ, जिससे अलकनंदा नदी में टो कटिंग हुई जो अब भी जारी है।

वैज्ञानिक अपने साथ भू-धंसाव वाले इलाके से मिट्टी, पानी के कुछ नमूने भी लाए हैं। जिनकी संस्थान की प्रयोगशाला में जांच की जा रही है। ताकि इस बात का पता लगाया जा सके कि मिट्टी में पानी की मात्रा कितनी हैवैज्ञानिकों का कहना है कि जोशीमठ को आपदा से बचाने के लिए तत्काल जल निकासी की अत्याधुनिक व्यवस्था करनी होगी। इसके साथ ही पानी की आपूर्ति को भी नियंत्रित करना होगा। वहीं, भू-धंसाव वाले इलाकों में जो भी निर्माण किए जाएं या रिटेनिंग वॉल बनाई जाए, उनमें डीप होल बनाए जाएं। ताकि मानसून के दौरान रिटेनिंग वॉल जल निकासी में बाधा न बने।

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