उत्तरकाशी टनल हादसागडकरी के मोर्चे पर उतरते ही खत्म हुआ बिखराव, रेस्क्यू ऑपरेशन ने पकड़ी सही दिशा

News Khabar Express

ऑगर मशीन ठीक से चल गई तो दो से ढाई दिन में हम उन तक पहुंच सकते हैं। उम्मीद भरे ये अल्फाज केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के थे। चार दिन पहले उत्तरकाशी के सिलक्यारा पहुंचने के बाद उन्होंने यह बात कही थी।

सड़कों और सुरंगों के निर्माण के दौरान उन्होंने न जाने ऐसी कितनी चुनौतियों का देखा होगा। लेकिन हिमालय के नाजुक पहाड़ों को चीरकर बनाई जा रही सिलक्यारा टनल की चुनौती कुछ अलग किस्म की थी। टनल में फंसे 41 मजदूरों का जीवन बचाने के लिए केंद्र से लेकर राज्य तक सब चिंतित प्रयासरत दिखे। मगर यह भी सच है कि तब यह ऑपरेशन बिखरा-बिखरा सा था। गडकरी के ग्राउंड जीरो पर उतरने के बाद इसे एक दिशा मिली।

मशीनों को सिलक्यारा तक पहुंचाने के लिए साजो सामान लेकर वायुसेना के विमानों ने उड़ान भरी तो सेना, बीआरओ, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आरवीएनएल, एसजेवीएनएल, टीएचडीसी, सड़क एवं परिवहन मंत्रालय, एनएचआईडीसीएल समेत राज्य सरकार की अन्य एजेंसियां अपने-अपने मोर्चे पर पूरी तरह से जुट गई। सही दिशा पकड़ते ही बुधवार को 11वें दिन ऑगर मशीन के सहारे जीवनदायी पाइप मजदूरों से अब कुछ ही मीटर के फासले पर हैं।

युद्धस्तर पर चल रहे अभियान को अंजाम तक पहुंचाने के लिए जी-तोड़ कोशिश में जुटे हर कारिंदे के चेहरे पर उम्मीद की चमक साफ दिखाई दे रही है। कुछ दिन पूर्व तक भगवान से चमत्कार की दरकार कर रहा हर शख्स अब उस क्षण को देख पा रहा है, जब सभी मजदूर सुरंग के बाहर आते दिखेंगे।

सिलक्यारा पहुंचकर गडकरी ने पूरे आत्मविश्वास के साथ ऑपरेशन की सफल हो जाने की उम्मीद यूं नहीं की। दरअसल, इसके पीछे की कुछ खास वजह रहीं। केंद्र से लेकर राज्य सरकार ने अपनी सभी तकनीकी और विशेषज्ञों की टीमों को एक साथ मोर्चें पर झोंक दिया। अमेरिका व अन्य देशों के सुरंग निर्माण से जुड़े जानकारों से लगातार रायशुमारी की। उन्हें सिलक्यारा भेजा गया। चूंकि मजदूरों का जीवन बचाना सर्वोच्च प्राथमिकता थी, इसलिए सुरंग के आसपास लंबवत और समानांतर पांच जगहों से खोदने की भी ठान ली गई।
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