जिन अटल उत्कृष्ट विद्यालयों के दम पर राज्य सरकार छात्रों को उच्चकोटि की शिक्षा देने का दंभ भर रही है, वह अपने पहले ही पायदान पर औंधे मुंह गिरते दिख रहे हैं। सीबीएसई की मान्यता वाले प्रदेश के 186 अटल उत्कृष्ट विद्यालयों के 12वीं के आधे छात्र ही परीक्षा में पास हो सके। अटल विद्यालयों का 10वीं का परिणाम भी उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा।राज्य में अटल उत्कृष्ट विद्यालयों की संख्या 189 है। इनमें से 186 को सीबीएसई की मान्यता मिल चुकी है। इन विद्यालयों की स्थापना का यह उद्देश्य था कि छात्रों को हिंदी के साथ अंग्रेजी माध्यम में उच्चकोटि की शिक्षा दी जा सके। सीधे तौर पर कहें तो यह स्कूल निजी स्कूलों की प्रतिस्पर्धा के बीच सामान्य छात्रों को उसी श्रेणी की शिक्षा देने के लिए स्थापित किए गए हैं। ऐसे स्कूलों में प्रधानाचार्यों समेत शिक्षकों को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया गया है। साथ ही संशाधनों के मामले में भी इन्हें उन्नत बनाया गया है।
दूसरी तरफ इन स्कूलों के बूते सरकार ने रिवर्स पलायन के ख्वाब भी देखे। सभी तरह की तैयारी और औपचारिकताओं के साथ यहां के 10वीं और 12वीं के छात्र सीबीएसई की बोर्ड परीक्षा में बैठे। परीक्षा परिणाम से पहले माध्यमिक शिक्षा विभाग अटल विद्यालयों के उत्कृष्ट प्रदर्शन की उम्मीद कर रहा था। जब परिणाम आया तो पता चला कि अटल विद्यालयों का प्रदर्शन देहरादून रीजन के अन्य सभी श्रेणी के स्कूलों में सबसे पीछे हैं।
अटल उत्कृष्ट विद्यालयों के उम्मीद से कम रहे परीक्षा परिणाम को लेकर मुख्य शिक्षा अधिकारियों से रिपोर्ट तलब की जाएगी। क्योंकि, इन विद्यालयों का नोडल मुख्य शिक्षा अधिकारियों को बनाया गया था। रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद परीक्षा परिणाम का उचित विश्लेषण किया जा सकेगा।साथ ही विभिन्न नीतिगत निर्णय लेकर व्यवस्था को बेहतर बनाना होगा।
वहीं सीबीएसई के इंटरमीडिएट और हाईस्कूल के परीक्षा परिणाम में देहरादून रीजन में जवाहर नवोदय, राजीव गांधी नवोदय व केंद्रीय विद्यालयों का दबदबा रहा। उत्तीर्ण प्रतिशत में ये विद्यालय बीस साबित हुए, जबकि सुविधा संपन्न कहे जाने वाले निजी विद्यालय इस दौड़ में पिछड़ गए। अटल उत्कृष्ट विद्यालयों की स्थिति भी खराब रही।
सीबीएसई के देहरादून रीजन में उत्तराखंड के 13 और उत्तर प्रदेश के आठ जनपद समाहित हैं। बोर्ड से संबद्ध विद्यालयों पर नजर डालें तो निजी विद्यालयों की संख्या अधिक है। सुविधाओं के लिहाज से निजी विद्यालय अधिक संपन्न भी हैं, लेकिन अभिभावकों से मोटी फीस वसूलने वाले ये विद्यालय उत्तीर्ण प्रतिशत में पीछे हैं।
जबकि, दून में अधिकांश निजी विद्यालय एजुकेशन हब की पहचान को बखूबी भुना रहे हैं। कुछ ही विद्यालय हैं, जिनकी वजह से साख बची है। वरना बाकी विद्यालयों के लिए यही कहा जाएगा कि ऊंची दुकान और फीके पकवान। तुलनात्मक रूप से केंद्रीय विद्यालय कहीं बेहतर स्थिति में हैं।